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कुछ अनसुने फसाने,
कुछ यूंही अकेले में ,
मैं अक्सर तन्हा हो जाता हूं,
कोई नहीं जमाने में अपना,
मैं कमबख्त भूल जाता हूं,
जमाने भर के लोग है यहां,
फिर भी इस महफिल में
खुद को अकेले पाता हूं,
वो कहते हैं हमसे मिला करो
बस इसी बात में मैं हर बार
फंस जाता हूं,,
अब आए हैं लोग सुनने
किस्सा मेरा,
मैं तो पागल हूं साहब
यूंही अनसुने फसाने सुनाता हूं
मैं अक्सर तन्हा हो जाता हूं,
कोई नहीं जमाने में अपना,
मैं कमबख्त भूल जाता हूं,
जमाने भर के लोग है यहां,
फिर भी इस महफिल में
खुद को अकेले पाता हूं,
वो कहते हैं हमसे मिला करो
बस इसी बात में मैं हर बार
फंस जाता हूं,,
अब आए हैं लोग सुनने
किस्सा मेरा,
मैं तो पागल हूं साहब
यूंही अनसुने फसाने सुनाता हूं
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