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मेरा परिचय मेरी कविता....
मेरा परिचय मेरी कविता....


जग ने पूछा कौन व्यथित हैं,
प्रश्न प्रश्न प्रति प्रश्न हुआ।
प्रश्नो की प्रतिध्वनि से झंकृत,
उपनिषदों सी बोली कविता।


चलो आज तुम साथ हमारे,
उथलेपन से गहराई में।
लिखो आज कुछ गुणन भाग फल,
जोड़ घटाने वाली कविता।।


वेद ऋचाओं सी वह आयी,
मैं विषयी विष पोषण में।
तोषण की तत्परता का ,
परिणाम बताने आयी कविता।।


कौन कहॉं कैसे-कैसे कब,
कारण वारण हेतु रहा।
कठिन द्वन्द विस्मित मय मन में,
छुईमुई मुरझायी कविता।।


बीत गया सब शून्य शेषमय,
नींद स्वप्न सहलाने में,।
सम्बन्धो की परिभाषा का ,
सत्य बताने आई कविता।।


कहने को तो बहुत है लेकिन,
कहने से अब क्या होगा,।
बिना कहे ही काम चलाओ,
यही मुझे समझायी कविता।।


समझो समझदार होने का,
दम्भ पालना घातक है।
यही समझ हर समझदार को,
बार-बार समझायी कविता।।


मेरे माता-पिता बेटे मेरे अपने,
अपने में मैं ढूढ़ रहा।
अपनों में अपनों का अन्तर,
अर्थ सहित समझायी कविता।।


पाचक और अपाचक सारे,
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