...

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सीख लिया होगा .......(अतुकांत कविता )

हर स्त्री ,
रूठने के बाद,
मनाई नहीं गई ,
शायद तब उसने सीखा होगा सब्र रखने का हुनर.......

हर स्त्री के,
ज़ख़्मों पर मरहम ,
नहीं लगाया गया होगा,
शायद तब उसने सीखा होगा दर्द को बरदाश्त करने का हुनर ......

हर स्त्री को
नहीं मिल पाया होगा,
बोलने का अधिकार....
या फिर उसे चुप करा दिया गया होगा
कभी संस्कारों, घर की प्रतिष्ठा के नाम पर
तब शायद उसने सीख लिया होगा मौन रहने का हुनर........

हर स्त्री के,
हिस्से में नहीं आई होगी प्रशंसा ..
शायद तब ही उसने सीखा लिया होगा..
तानों-उलहानों के कड़वे घूँट पीकर जीने का हुनर........

हर स्त्री को,
नहीं मिला होगा...
गौर वर्ण ,छरहरी काया ,सुंदर चेहरा,
शायद तब उसने सीखा होगा ...
तीक्ष्ण व्यंग्य बाणों से उपजे दर्द को ..
अपने आँचल में समेट लेने का हुनर .......

हर स्त्री के,
कलेजे में नहीं आई होगी...
किसी पुरुष से लड़ने की हिम्मत
शायद तभी इन स्त्रियों ने बचा लिया होगा
पुरुषों में पुरुषत्व होने का दंभ..........

इस तरह ,
कुछ स्त्रियों ने सीख लिया ...
ज़िन्दा रहते हुए भी पल-पल मरने का हुनर..............!!!!!!!

© प्रिया ' ओमर '
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(इसे सिर्फ़ रचना की दृष्टि से पढ़ा जाए , वाद-विवाद अपेक्षित नहीं है 🙏)



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