बस कर इन्सान
सच्ची थी भगवान की बस्ती,
मिलकर सब करते थे मस्ती।
अब जुठ कर रहा जबरदस्ती,
मानव अब तो बस भी कर।
तेरी मेरी इन गलियों मे,
सच्चे ताकत की नलियों मे।
छा गयी जुठो की कश्ती,
मानव अब तो बस भी...
मिलकर सब करते थे मस्ती।
अब जुठ कर रहा जबरदस्ती,
मानव अब तो बस भी कर।
तेरी मेरी इन गलियों मे,
सच्चे ताकत की नलियों मे।
छा गयी जुठो की कश्ती,
मानव अब तो बस भी...