...

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मैं और मेरा वजूद
मैं ऐसा था नहीं
कुछ अपनों ने बनाया
कुछ परायों ने चलाया
जैसा जब चाहा मुझे जी भर के नचाया
कभी कुछ गवाया
कभी कुछ निभाया
कभी दोस्तों ने दी दगा
कभी अपनों के बोझ तले भागा
जिससे दोस्ती निभाया बदले में धोका ही पाया
कभी जो इश्क फरमाया इस्तमाल हुआ जब तक हो पाया
रिश्ते बहुत थे पर थे बस नाम के
कभी किसी ने ना जताया के थे वो काम के
किसी का जुबान बन कड़वाहट कमाया
किसी का सहारा बन खुद...