संघर्ष का सार, राम का विचार
लक्ष्मण बोले राम से, क्यों तीर नहीं उठाते हो,
घर में हो रहा है अत्याचार, चुपचाप क्यों सह जाते हो?
बचपन से देखा है तुम्हे, वीरता की मिसाल,
फिर आज क्यों नहीं, दिखा रहे वो पुराना कमाल?
आप ही तो बोले, जवाब है जरुरी, अत्याचार का,
सहनशीलता से कब तक, चलेगी ये मजबूरी?
कंधे पे तीर, धनुष लिए घूमते हो,
फिर क्यों अपने घर के, दुखों को नहीं चूमते हो?
राम की चुप्पी में, छुपी है सच्चाई,
नाहीं तीर उठाऊंगा, जब तक, न हो न्याय का साथ।
लक्ष्मण, समझ वो दर्द, जो छुपा है, दिल...
घर में हो रहा है अत्याचार, चुपचाप क्यों सह जाते हो?
बचपन से देखा है तुम्हे, वीरता की मिसाल,
फिर आज क्यों नहीं, दिखा रहे वो पुराना कमाल?
आप ही तो बोले, जवाब है जरुरी, अत्याचार का,
सहनशीलता से कब तक, चलेगी ये मजबूरी?
कंधे पे तीर, धनुष लिए घूमते हो,
फिर क्यों अपने घर के, दुखों को नहीं चूमते हो?
राम की चुप्पी में, छुपी है सच्चाई,
नाहीं तीर उठाऊंगा, जब तक, न हो न्याय का साथ।
लक्ष्मण, समझ वो दर्द, जो छुपा है, दिल...