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Bhi To Ho Sakta Hai
कोई महबूब सितमगर भी तो हो सकता है
फूल के हाथ में ख़ंजर भी तो हो सकता है

एक मुद्दत से जिसे लोग ख़ुदा कहते हैं
छू के देखो कि वो पत्थर भी तो हो सकता है

मुझ को आवारगी-ए-इश्क़ का इल्ज़ाम न दो
कोई इस शहर में बे-घर भी तो हो सकता है

कैसे मुमकिन कि उसे जाँ के बराबर समझूँ
वो मिरी जान से बढ़ कर भी तो हो सकता है
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