दोस्ती -2
न जाने क्या पुराने मित्रों को होता गया
उनके मन से दोस्ती का ख्याल उड़ता गया
पहले मिलते थे तो ऐसे खुश होते थे जैसे
सर्वस्व मिल जाने पर इस धरा का, नहीं खुश होते वैसे
न जाने वो दौर दोस्ती का कैसे धीरे-धीरे चला गया
जो भी था सुख दोस्ती का,वो सिहर-सिहर के मर गया
जैसे ही महिला मित्र आयी सबके जीवन में
अपनी ही परछाई को ही नहीं देख पाए वो भूल से
उनके पीछे तो सर्वस्व न्योछावर कर...
उनके मन से दोस्ती का ख्याल उड़ता गया
पहले मिलते थे तो ऐसे खुश होते थे जैसे
सर्वस्व मिल जाने पर इस धरा का, नहीं खुश होते वैसे
न जाने वो दौर दोस्ती का कैसे धीरे-धीरे चला गया
जो भी था सुख दोस्ती का,वो सिहर-सिहर के मर गया
जैसे ही महिला मित्र आयी सबके जीवन में
अपनी ही परछाई को ही नहीं देख पाए वो भूल से
उनके पीछे तो सर्वस्व न्योछावर कर...