...

11 views

मंदिर न मस्जिद हमें किताब की ज़रूरत है..
प्रश्न खड़ा है मुंह बाहे, जवाब की ज़रूरत है।
दस वर्ष के शासन के, हिसाब की ज़रूरत है।।
बहुत लड़ लिए हम धर्म ओ जाति के नाम पर,
मंदिर न मस्जिद हमें, किताब की ज़रूरत है।।
गन्दी राजनीति ने देश को गर्त में ढकेल दिया,
हमारे वतन को अब, इंक़लाब की ज़रूरत है।।
सड़क पर इन चंद वतन परस्तों से क्या होगा,
ये सरकार बदलने को, सैलाब की ज़रूरत है।।
ये जो विपक्ष में टिम टिमा रहें हैं कुछेक जुगनू,
इनसे न होगा कुछ, आफ़ताब की ज़रूरत है।।
मनुबाद और सामंथबाद जैसे ज़हरीले दरिया,
ना मिल पाएं 'सिफ़र', दोआब की ज़रूरत है।।

© संजय सिफ़र