दिसंबर की आखिरी रात
ठंड में दुबकी हुई रात थी वह
कातिल ठंड बयारों के साथ थी वह
बेचैनी से भरी हुई
कोहरे में सनी हुई
चॉंद की बिंदी से सजी हुई
बेकरारी में भरी थी वह
ओस की बूंदों से रोती हुई
सूनी सडंकों पर आहें भरती हुई
रह रहकर दर्द सह रही थी वह
लोग जुटे हुए थे स्वागत में
आने वाले नये वर्ष का
बधाइयों का कतार लगा था...
कातिल ठंड बयारों के साथ थी वह
बेचैनी से भरी हुई
कोहरे में सनी हुई
चॉंद की बिंदी से सजी हुई
बेकरारी में भरी थी वह
ओस की बूंदों से रोती हुई
सूनी सडंकों पर आहें भरती हुई
रह रहकर दर्द सह रही थी वह
लोग जुटे हुए थे स्वागत में
आने वाले नये वर्ष का
बधाइयों का कतार लगा था...