...

10 views

मैं जब भी लिखती हूँ
मैं जब भी लिखती हूँ बेशुमार लिखती हूँ
हर पन्ने पर अपने दर्द का हिसाब लिखती हूँ
जो रह गयी ख्वाहिशें मन में दबी कहीं ,
उनका जिक्र बार-बार लिखती हूँ |

मैं जब भी लिखती हूँ अपने जज्बात लिखती हूँ
कोरे कागज़ पर अधूरे ख्वाब लिखती हूँ
एहसास मन के इक्कठे कर सारे ,
उन्हें पन्नों पर कुरेद इश्क का बाज़ार लिखती हूँ |

मैं जब भी लिखती हूँ भावनाएं कमाल लिखती हूँ
बेवफा को भी वफादार लिखती हूँ
अपनी कलम की स्याही से ,
दिल को झकझोर उसमें छिपा हर राज़ लिखती हूँ |

मैं एक ही नाम सुबह-शाम लिखती हूँ
मैं एक ही काम हर बार करती हूँ
खुद से ही सवाल कर ,
मैं जब भी लिखती हूँ उसे अपना इश्क जवाब लिखती हूँ ||