bachpan
एक बचपन का ज़माना था,
ना अपना कोई ठिकाना था।
चाहत तो चांद पाने की थी,
पर दिल तो तितलियों का दीवाना था।।
हर सुबह पढ़ने जाना होता था,
पर इंतज़ार तो शाम के खेलने का रहता था।
होमवर्क ना करने के हज़ार बहाने थे,
पर खेलने को हमेशा तैयार रहते थे।।
बारिश की इंतजार रहती थी,
कागज़ की नाव होती थी।
वो मिट्टी के घर होते थे,
रंग बिरंगे गुब्बारे होते थे।।
बचपन के सपने उम्मीदों का मेहमान,
वो खिलखिलाती हंसी मस्ती का जहान।
जब हम खेलते थे खुशी से साथ,
कभी गिरो तो वो मां का हाथ।।
मां के हाथ का खाने का स्वाद,
बचपन की ये कविता रह गई याद।
जवानी आ गई बालपन रूठ गई,
बचपन की दुनिया पीछे छूट गई।।
© All Rights Reserved
ना अपना कोई ठिकाना था।
चाहत तो चांद पाने की थी,
पर दिल तो तितलियों का दीवाना था।।
हर सुबह पढ़ने जाना होता था,
पर इंतज़ार तो शाम के खेलने का रहता था।
होमवर्क ना करने के हज़ार बहाने थे,
पर खेलने को हमेशा तैयार रहते थे।।
बारिश की इंतजार रहती थी,
कागज़ की नाव होती थी।
वो मिट्टी के घर होते थे,
रंग बिरंगे गुब्बारे होते थे।।
बचपन के सपने उम्मीदों का मेहमान,
वो खिलखिलाती हंसी मस्ती का जहान।
जब हम खेलते थे खुशी से साथ,
कभी गिरो तो वो मां का हाथ।।
मां के हाथ का खाने का स्वाद,
बचपन की ये कविता रह गई याद।
जवानी आ गई बालपन रूठ गई,
बचपन की दुनिया पीछे छूट गई।।
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