साये
रात के गहरे वे साये
अब तलक हैं वार करते
गर अशंकित मन न होता
बंद हम क्यों द्वार करते।
कालिमा सायों की धोकर
क्यों न हम उजला बना दें
और हम फिर प्यार से
घर के आलों में सजा लें।
बात एक कौंधी है मन में
अब यही व्यापार करते।
अब तलक हैं वार करते
गर अशंकित मन न होता
बंद हम क्यों द्वार करते।
कालिमा सायों की धोकर
क्यों न हम उजला बना दें
और हम फिर प्यार से
घर के आलों में सजा लें।
बात एक कौंधी है मन में
अब यही व्यापार करते।