...

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क्या लौट पाऊँगा मैं...?
न पैसों के ढ़ेर पर देखना चाहा खुद को,
न मुफ़लिसों के जैसा जीवन चाहा मैंने,
इतना ही तो चाहा मैंने बेदर्द ज़िंदगी से,
बस ये खुशियाँ मेरे घर का पता न भूले,

न आसमान से उच्चा मेरा कोई मकान हो,
न चंद लोगों के आराम को जगह कम पड़े,
इतना ही तो चाहा मैंने बेदर्द ज़िंदगी से,
छोटा सही मेरा भी अपना कोई घरौंदा हो,

न...