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सावन की अगन।
समन्दर का पानी खप गया
आग बुझाते बुझाते,
उसने तेरी जुल्फों को सिरे किया,
अंदर से जल बुझ के खाक होगया में,
उस दिन तेरी बरसात में भीगते भीगते
राख हो गए में,
मगर आज भी ये जंगल देहेक रहा हे तेरी बेवफाई की बरसातो से,
आज भी महक रही ये जमीन तेरी सौंधी खुशबू से और देहेक़ रहा जंगल तेरी बरसात से।
© Poshiv
आग बुझाते बुझाते,
उसने तेरी जुल्फों को सिरे किया,
अंदर से जल बुझ के खाक होगया में,
उस दिन तेरी बरसात में भीगते भीगते
राख हो गए में,
मगर आज भी ये जंगल देहेक रहा हे तेरी बेवफाई की बरसातो से,
आज भी महक रही ये जमीन तेरी सौंधी खुशबू से और देहेक़ रहा जंगल तेरी बरसात से।
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