...

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चल छोड़ यार...
कभी कभी लगता है तन्हाई में
की किसिके साथ की बहुत जरूरत है
ये जानने के बावजूद की कोई
अपना नहीं...!
सूखे पत्तों के डाली की तरह
सबकुछ वक़्त के साथ झड़ जाएगा एक दिन
ये जानने के बावजूद की ये छलावा है
हकीक़त नहीं...!
मैने इन दिनों खामोशी को अपना दोस्त बनाया
शोर शराबे से दूर अपना कहा बसाया
ये जानने के बावजूद की यही मेरा अपना है
कोई सपना नहीं..!
हर वक़्त जमाने मै होड़ लगी है
दूसरों को ग़लत और खुदको सही साबित करने की
ये जानने के बावजूद मौत ही आखरी सच है
जिंदगी नहीं...!
चल छोड़ यार जमाने की बात
मासूम तू खुदको ढुंढ ले
तू खुद ही खुद की दोस्त है
ये जमाना नहीं...!
ये जमाना नहीं...!