...

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तुम
मैं तेरा नाम लबों पर लाना चाहूँ, क्यों तुम्हें मंज़ूर नहीं,
इश्क़ है तुमसे इस क़दर इसमें मेरा तो कोई कुसूर नहीं,

तुम आए तुम समाए तुमने ही है जीना मेरा दुश्वार किया,
तुम ही तुम बह रहे नसों में अब, धड़कनों में तेरा अक्स पिया,

तेरा मिलना इत्तेफ़ाक रहा, पर पागलपन ये आम तो नहीं,
तेरा एहसास आकर ढल जाए कभी, ये कोई शाम तो नहीं,

मेरी बाहों में अब होगा कोई तो तेरा ही तेरा सुरूर होगा,
तेरा नहीं पता मुझे, मुझपे हर पल तेरा हक़ ज़रूर होगा।
© लहर✍🏻