माँ
#माँ#
जूड़े में बाँध कर अपनी सारी इच्छाओं को वो हँसती है ।
माँ ही तो है जो बंद झरोखे से भी बच्चों के लिये सपने बुनती है।
माथे पर अपने बच्चों की चिंता की लकीरें लिए चलती रहती है।
नैनों के कोरों से गिरते मोती को सबसे छिपाती रहती है।
अपने साड़ी के फटे पल्लू को सिल कर काम चलाती है
पर हर होली,दिवाली पर बच्चों को नया कपड़ा दिलाती है।
शीतलता का...
जूड़े में बाँध कर अपनी सारी इच्छाओं को वो हँसती है ।
माँ ही तो है जो बंद झरोखे से भी बच्चों के लिये सपने बुनती है।
माथे पर अपने बच्चों की चिंता की लकीरें लिए चलती रहती है।
नैनों के कोरों से गिरते मोती को सबसे छिपाती रहती है।
अपने साड़ी के फटे पल्लू को सिल कर काम चलाती है
पर हर होली,दिवाली पर बच्चों को नया कपड़ा दिलाती है।
शीतलता का...