(माता -पिता ईश्वर के समान)
जिस कंधे पर चढ़कर
कभी हम मेला
देखा करते थे,
आज जब हमारी बारी आई
तो क्यो हम उन्हे
बोझ कह देते।
जिस मां की
एक झलक के बिना
हम जी नही सकते थे,
आज भी तो वही मां है
तो क्यो हमे वो
एक फूटी - कौड़ी भी नही सुहाते।
जिस पिता ने दुनिया की सारी
खुशी...
कभी हम मेला
देखा करते थे,
आज जब हमारी बारी आई
तो क्यो हम उन्हे
बोझ कह देते।
जिस मां की
एक झलक के बिना
हम जी नही सकते थे,
आज भी तो वही मां है
तो क्यो हमे वो
एक फूटी - कौड़ी भी नही सुहाते।
जिस पिता ने दुनिया की सारी
खुशी...