...

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काश ऐसा होता..
अगर कभी किसी रोज़,
रब से मुलाकात हो जाती।
हो जाती उसकी ऐसी मेहर,
के दुआं मेरी कबूल हो जाती।
तो बन जाती मैं चंचल हवा,
और बिखरा देती तेरी जुल्फों को।
या बन जाती नर्म जाड़े...