परवाज़
सारे रस्मों वादों को अब बेदार कर आया।
हां! मैं ख़ुद पर ही ख़ुद से वार कर आया।
पूछने से कहां मिली कोई खबर यार की?
क्या होना था हमसे? तेरे दर को भी पार कर आया।
ना जानते है हम उल्फत में जीना जब अब।
ख़ामोशी को ही ख़ुद का रूहदार कर आया।
अब आएं हो मुझे ढूंढने को ज़माने में तुम?
जाने - जां मैं अब सारे हदों को...
हां! मैं ख़ुद पर ही ख़ुद से वार कर आया।
पूछने से कहां मिली कोई खबर यार की?
क्या होना था हमसे? तेरे दर को भी पार कर आया।
ना जानते है हम उल्फत में जीना जब अब।
ख़ामोशी को ही ख़ुद का रूहदार कर आया।
अब आएं हो मुझे ढूंढने को ज़माने में तुम?
जाने - जां मैं अब सारे हदों को...