8 views
क्या कहोगे
क्या कहोगे अपने अफसाने में
दरिया सूख गई प्यास बुझाने में
रुदन कर रही है हमामखाने में
खूब महफ़िल सजाए मयखाने में
आबरु उतार कर रख दिया वही
ठंडी बयार समझ बैठे जहाँ छहाने में
अंधेरे का राज है चारो तरफ
उम्र गुजर गई जहाँ चिराग जलाने में
स्वार्थ से भरा कर्म है जिनका
आशियां जल गया इज्जत बनाने में
ज़िन्दगी बेजार सी चलती रही
अब कौन हाथ लगाए अर्थी उठाने में
© स्वरचित Radha Singh
दरिया सूख गई प्यास बुझाने में
रुदन कर रही है हमामखाने में
खूब महफ़िल सजाए मयखाने में
आबरु उतार कर रख दिया वही
ठंडी बयार समझ बैठे जहाँ छहाने में
अंधेरे का राज है चारो तरफ
उम्र गुजर गई जहाँ चिराग जलाने में
स्वार्थ से भरा कर्म है जिनका
आशियां जल गया इज्जत बनाने में
ज़िन्दगी बेजार सी चलती रही
अब कौन हाथ लगाए अर्थी उठाने में
© स्वरचित Radha Singh
Related Stories
8 Likes
0
Comments
8 Likes
0
Comments