...

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क्या कहोगे
क्या कहोगे अपने अफसाने में
दरिया सूख गई प्यास बुझाने में

रुदन कर रही है हमामखाने में
खूब महफ़िल सजाए मयखाने में

आबरु उतार कर रख दिया वही
ठंडी बयार समझ बैठे जहाँ छहाने में

अंधेरे का राज है चारो तरफ
उम्र गुजर गई जहाँ चिराग जलाने में

स्वार्थ से भरा कर्म है जिनका
आशियां जल गया इज्जत बनाने में

ज़िन्दगी बेजार सी चलती रही
अब कौन हाथ लगाए अर्थी उठाने में
© स्वरचित Radha Singh