चलो ना बचपन वापस चलें
दिन भर का शोर, फ़िर रात में सुकून की नींद
दिनभर लड़ना, सुबह नींद मां की गोद में खुलना
कितना अच्छा था ना
ना ये पढ़ाई की चिंता थी ना ही
दुनिया का ये फ़ालतू सा संघर्ष
बस घूम _घाम कर आओ कहीं से
और पापा के हाथों का प्यारा सा स्पर्श
अच्छा था ना यार,, कहाँ से आ गए इस
प्रतियोगिता की दुनिया में इससे अच्छी तो
बचपन की पो_सम्पा की महफ़िल हुआ करती थी
हो कोई परेशानी चाहे पढ़ने का मन ना करे
चैन से सो जाओ ना मम्मी सब सम्भाल लेगी
इस स्नातक /स्नातकोत्तर से...
दिनभर लड़ना, सुबह नींद मां की गोद में खुलना
कितना अच्छा था ना
ना ये पढ़ाई की चिंता थी ना ही
दुनिया का ये फ़ालतू सा संघर्ष
बस घूम _घाम कर आओ कहीं से
और पापा के हाथों का प्यारा सा स्पर्श
अच्छा था ना यार,, कहाँ से आ गए इस
प्रतियोगिता की दुनिया में इससे अच्छी तो
बचपन की पो_सम्पा की महफ़िल हुआ करती थी
हो कोई परेशानी चाहे पढ़ने का मन ना करे
चैन से सो जाओ ना मम्मी सब सम्भाल लेगी
इस स्नातक /स्नातकोत्तर से...