"पीहर"
पीहर अपना देखने, गई थी कल मैं गांव।
ना वह तपती धूप थी, ना वो ठंडी छांव।।
ना कोई पनघट मिला, ना कोई पणिहार।
ना कोई युवती मिली, ना कोई लणिहार।2
लालच ने कटवा दिए, सभी बेरियां जांट।
खड़े खेत में देखते, हरदम मेरी बांट। 3
ना पहले सा चाव था, ना पहले सा प्यार।
चाव करनिये उड़ गए, सिर्फ रह गई डार। 4
बात समझ खग बावरे, काल बड़ा विकराल।
ओ पंछी अब ना रही, जो थी ठंडी डाल। 5
ज्ञानी जन इस बात से, होते नहीं उदास।
वक्त कभी रुकता नहीं, चाबी ईश्वर पास। 6
निराश कभी होना नहीं, लो मन को समझाय।
गया वक्त मुड़ के कभी, वापस फिर न आय। 7
अनहोनी यह है नहीं, है यह जग की रीत।
केवल यादों में रहे, वक्त गया जो बीत। 8
जो कुछ भी है बच गया, उसकी करो संभाल।
बिल्कुल न से थोडा भी, बेहतर हो हर हाल।
© JUGNU
ना वह तपती धूप थी, ना वो ठंडी छांव।।
ना कोई पनघट मिला, ना कोई पणिहार।
ना कोई युवती मिली, ना कोई लणिहार।2
लालच ने कटवा दिए, सभी बेरियां जांट।
खड़े खेत में देखते, हरदम मेरी बांट। 3
ना पहले सा चाव था, ना पहले सा प्यार।
चाव करनिये उड़ गए, सिर्फ रह गई डार। 4
बात समझ खग बावरे, काल बड़ा विकराल।
ओ पंछी अब ना रही, जो थी ठंडी डाल। 5
ज्ञानी जन इस बात से, होते नहीं उदास।
वक्त कभी रुकता नहीं, चाबी ईश्वर पास। 6
निराश कभी होना नहीं, लो मन को समझाय।
गया वक्त मुड़ के कभी, वापस फिर न आय। 7
अनहोनी यह है नहीं, है यह जग की रीत।
केवल यादों में रहे, वक्त गया जो बीत। 8
जो कुछ भी है बच गया, उसकी करो संभाल।
बिल्कुल न से थोडा भी, बेहतर हो हर हाल।
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