Poem
मै नदी हूँ बहती जाती हूँ निरंतर धारा के प्रवाह मे
सब युगों को देखते हुए बदलते हुए मानव को अपनी संस्कृति का रुख बदलते हुए मानव को !.मैं
Ndi हूँ बहती हूँ बहती जाती हूँ
Na जाने कितनों की प्यास बुझाती हूँ
Kitno की आजीविका चलाती हूँ
Kitno की...
सब युगों को देखते हुए बदलते हुए मानव को अपनी संस्कृति का रुख बदलते हुए मानव को !.मैं
Ndi हूँ बहती हूँ बहती जाती हूँ
Na जाने कितनों की प्यास बुझाती हूँ
Kitno की आजीविका चलाती हूँ
Kitno की...