उदास ज़िंदगी की कहानी
जीते जीते थक सी गई हूं
सुबह की रौशनी से डर सा लगता है
आँख खुलते ही जैसे डरावना मंज़र नज़र आता है
शाम उदास पहाड़ों में खोई सी लगती है
रात मेरी हमसफर सी लगती है
ज़िंदगी से बैर हो गया है
मौत की राह पल पल तकती हूं
कभी कभी सोच में डूब जाती हूं
खयालों से लड़ाई कर लेती हूं
चल ज़िंदगी
तुझे भी बेच दूं कहीं
ख्वाबों को खरीदना मुमकिन नहीं
ख्वाहिशों का कोई मकाम नहीं
नींद से छूट गया नाता
हँसी से मेरा अब क्या रिश्ता..!!?...
सुबह की रौशनी से डर सा लगता है
आँख खुलते ही जैसे डरावना मंज़र नज़र आता है
शाम उदास पहाड़ों में खोई सी लगती है
रात मेरी हमसफर सी लगती है
ज़िंदगी से बैर हो गया है
मौत की राह पल पल तकती हूं
कभी कभी सोच में डूब जाती हूं
खयालों से लड़ाई कर लेती हूं
चल ज़िंदगी
तुझे भी बेच दूं कहीं
ख्वाबों को खरीदना मुमकिन नहीं
ख्वाहिशों का कोई मकाम नहीं
नींद से छूट गया नाता
हँसी से मेरा अब क्या रिश्ता..!!?...