...

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हां कोई अनजान है


हां कोई अनजान है
न जान है न पहचान है,
माना कि देखा नहीं तुझे कभी मैंने
फिर भी लगता है जान पहचान है
अक्सर देखा है लोगो को बदलते
अपनो को गैरो में तब्दील होते,
इस भीड़ में शामिल होकर भी
कोई हाथ ऐसे थामेगा,
तपती रेत में जैसे कही बारिश की बूँद बन बरसेगा,
माना कि तुम साथ नहीं
खामोश जुबा पर कोई बात नहीं ,
दबी जुबा से इन हवाओं ने इशारा तो कुछ है किया,
कोई अजनबी है तेरे साथ में
नाम लेने से पर है उसने मना किया।
रचना झा.......