...

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वो...
देख ये झरने
ये उचे पर्वत
वो कुछ यू मुस्कुरा गई
पहले से था दिल उसका
फिर एक बार ले गई

वो खो गयी उनमे
नदी के बहते पानी की तरह
और मैं उसमे
पानी में जिंदा मछली की तरह

इन चंचल हवा ओ मे भी
मुझे उसके गीत सुनाये दिये
तो क्या हि गाता मै उसके लिए
ये हवाये मुझसे पहले
उससे इज़हार जो कर गए

बारिश की बूंदे उसे
छूने को तरस रही थी
हो गई होगी उनको भी उससे मोहब्बत
तभी तो आज ही इतनी
बरस रही थी

बेशाक इन सबको
मुझसे जलन हो रही थी
क्युकी
उनसे खुबसूरत कोई
हाथो मे लिए हाथ मेरे साथ जो खड़ी थी ।


© pain.in.pain_2211