आजकल धूप उदास है
आजकल धूप उदास है..
जब मुझसे मिलने आती है
उसकी आंखों में वो चमक नहीं होती
जो अमूमन हुआ करती थी..
शायद उसे नहीं दिखते
गलियों में खेलते बच्चे
जो उसके रहने तक साथ रुकते थे
हंसते खेलते उसके आंचल में..
ना ही मिलती हैं उन पेड़ों पर
बैठी मटमैली गौरैयां
जो उसका इंतजार किया करती थीं
हर रोज पौ फटते ही..
गांव की वो ऊंची हवेली भी तो
अब खंडहर हो गई
जहां वो आती थी मिलने
मेरी नानी से हर रोज़
कभी आंगन में
तो कभी छत पर
और हर बार वो थोड़ी-सी धूप बचाकर
अपने पल्लू के छोर में बांध लेती थीं
और सजा देती थीं मेरी आंखों में..
अब शायद उसे नहीं दिखता
अपना वो हिस्सा इन आंखों में
जिसके अक्स से चमकती थी वो
जिसे खोजने आती है आज भी
वो हर रोज मुझसे मिलने
मेरी बालकनी में...
© आद्या
जब मुझसे मिलने आती है
उसकी आंखों में वो चमक नहीं होती
जो अमूमन हुआ करती थी..
शायद उसे नहीं दिखते
गलियों में खेलते बच्चे
जो उसके रहने तक साथ रुकते थे
हंसते खेलते उसके आंचल में..
ना ही मिलती हैं उन पेड़ों पर
बैठी मटमैली गौरैयां
जो उसका इंतजार किया करती थीं
हर रोज पौ फटते ही..
गांव की वो ऊंची हवेली भी तो
अब खंडहर हो गई
जहां वो आती थी मिलने
मेरी नानी से हर रोज़
कभी आंगन में
तो कभी छत पर
और हर बार वो थोड़ी-सी धूप बचाकर
अपने पल्लू के छोर में बांध लेती थीं
और सजा देती थीं मेरी आंखों में..
अब शायद उसे नहीं दिखता
अपना वो हिस्सा इन आंखों में
जिसके अक्स से चमकती थी वो
जिसे खोजने आती है आज भी
वो हर रोज मुझसे मिलने
मेरी बालकनी में...
© आद्या