चाहत
हकीकत कुछ और ही थी
मोहब्बत की
ये न मुझे पता था न तुम्हें
चाहत के दरमियाँ
बस एक दूजे के संग
गिरफ्त होते गए हमदोनो
खुद से अनजान बनकर
वक्त के संग संग
सुकून
मोहब्बत की
ये न मुझे पता था न तुम्हें
चाहत के दरमियाँ
बस एक दूजे के संग
गिरफ्त होते गए हमदोनो
खुद से अनजान बनकर
वक्त के संग संग
सुकून
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