हस्तकला _अंकिता आनंद
मेरे घर की औरतें
हाथों से साँस लेती हैं
उनके दाँतों तले आई उनकी ज़बान
हड़बड़ा कर क़दम पीछे हटा लेती है
पलकें अनकहे शब्दों की गड़गड़ाहट
कस कर भीतर बाँध कर रखती हैं
कपड़े तह करते,
फ़र्नीचर की जगह बदलते,
आग से गीली लकड़ी बाहर खींचते,
नारियल तोड़ते…
इन हाथों को प्रशिक्षण दिया गया था
इन पर ख़ुदी लकीरों पर चलने का
सालों का सीखा वे भूल नहीं सकीं
पर जो कर सकती थीं वह किया
लकीरों को खुरदुरा और धुँधला कर दिया
उन रेखाओं से जो उनकी कमाई की थीं
जिनकी अब वे मालिक हैं।
रचनाकार : अंकिता आनंद प्रकाशन
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