...

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पुरुष ऐसा ही होता है ......
#InternationalMensDay

खुद के विचार से क्षीण होता हुआ ,
पृष्ठ-पृष्ठ नया साहस मैं रचता हुआ ....
अपने बनाए चक्रव्यूह फंसता हुआ ,
पाषण रूपी .. कहलाया जाता हुआ ....

मेरे सपनों का कोई .. अवशेष नहीं ,
उम्मीद के अवासन का अधिकार नही ...
जिम्मेदारी की आंच पर फूंका गया हूँ ,
ठंडी राख की भांति स्तब्ध पड़ा हूँ ....

रिश्तों के कुरुक्षेत्र में ... निशब्द हूँ ,
ह्रदय गाठ खोलने की कोशिश में ....
अपने अस्तित्व पर परतें चढ़ा रहा हूँ ,
अपनी ही जिंदगी का मौन दशर्क हूँ ....

अंगिनत पाबंदियां तो मुझ पर भी है ,
लापता हूँ मैं ... खुद में ही कही पर ....
दरमियाँ एहसास की किवाड़ बंद करें हूँ ,
मैं एक पुरुषावादी का निशां लिए खडा हूँ ....