...

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ढलती रही ये सांझ
मैंने देखा
सूर्य अस्ताचलगामी हो रहा था
गगन में अपनी किरणें बिखेर
खग-पंछियों को सूचना दे रहा था
अपने प्रस्थान की
पहले उसकी किरणें थीं पीताभा लिए श्वेत
जो शनै-शनै पूर्ण पीत में ढल रहीं थीं
बीता एक घटिक और पीताभा
ढलने लगी स्वर्ण-सुनहरी किरणों में
स्वर्ण-सुनहरी किरणें बढ़ने लगीं शनै-शनै
अपने यौवन की ओर
और ढल गईं पूर्ण केसरिये में जो परिपक्व होते-होते बिखेरने लगीं सिंदूरी आभा
सिंदूरी आभा आ गई ये संदेश लेकर
सूर्य ढल गया क्षितिज से पूरा
शेष न रहा थोड़ा-सा भी
जहाँ तक जातीं ये किरणें
वहाँ तक ये संदेश पहुँचा देतीं
रूई के फाहे-से मेघ जो रहे थे आकाश में तैर
उन्होंने भर लीं शेष...