...

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इश्क में
इश्क में मेने यह सोचा नही था,
ज़िन्दगी के सफर में इश्क से जुदा होकर,
वो लड़की ओर हसीन होती गई,
मैं यादों के सहारे भरी जवानी में ही बुढ़ापे पर आ गया,
वक्त भी अपनी फितरत में बड़ा बेरहम होता गया ।
अब घर में कौन आता ह कोन जाता मुझे क्या मालूम,
मैं तो कब का मर चुका हूं मुझे तो इस बात की भी खबर नही है,
इश्क ओर जहर में जंग जारी है,
मरना तो दीवाने को है,
इस जंग में कोन जीत पाया है।
उस औरत के हाथों अब दिए भी नही जलते,
ओर इधर सिगरेट के सहारे पूरी ज़िंदगी जल गई,
मेरे जिस्म को उसके हाथ लगे थे तो मैं खुदकुशी नही कर सका,
सो मैं अपनी रूह को धीरे धीरे मारता गया।
© Verma Sahab

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