...

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तुमने ऐसा क्यों किया?
तुमने भरी सभा में उसका मज़ाक बना दिया
बाद में वह खुद को ही कोसता रह गया।

तुमने बिना सोचे उसे उल्टा सीधा सुना दिया
बाद में वह खुद को ही बिना गलती के सज़ा का हकदार मानने लगा।

तुम उसे रुला के 'चले' गए
और वह घंटो तक रोता ही रह गया।

तुम न जाने मज़ाक मज़ाक में कितनी ही बुरी भली बातें बोल के चले गए
अब तो वह तुम्हारी ही बातों को सच मानने लग गया।

तुम गलत थे लेकिन फिर भी जीत गए
क्योंकि उसका अपने ऊपर से तो अब विश्वास ही उठ गया।
सिर्फ विश्वास?? अरे तुमने तो उसके सालों से जुटाए हुए हिम्मत को भी यूं ही तोड़ दिया।

उसे जवाब देना था लेकिन वह तो अपने आप से ही सवाल करने लगा।
वह सही था लेकिन फिर भी खुद को गलत समझने लगा।

कुछ बोलने से पहले तुमने एक बार सोचे क्यों नहीं लिया?
खुद हसने के लिए उसे क्यों रुला दिया?
अगर दुख कम नहीं करना था तो खुशी भी क्यों छिन लिया?
तुम उसका दिल रख नहीं सके तो तोड़ कैसे दिया?

तुम्हे एहसास तक नहीं हुआ
एक हस्ते खेलते इंसान को बेजान बनाकर रख दिया।
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