...

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सुकून की तलाश
भागम्भाग भरी इस जिंदगी में,
क्यों तु इतना भाग रहा है..?
भाग रहे जिस ओर सब,
क्यों तु भी उस राह भाग रहा है..?

एक पल को ठहर जरा,
और खुद से पूछ जरा।

क्या था तु? क्या ,
बनता जा रहा है..?
जिस कल का कोई ठिकाना नहीं,
उस की फिक्र में क्यों...
आज का सुकूँ खोता जा रहा है?

चंद कागज के टुकड़ों खातिर,
क्यों नींद, चैन सब गंवाये जा रहा है.?
दूसरों की देखादेखि में,
अपनी राहें, अपने ख्वाब...
सब भुलाये जा रहा है..?

औरों को खुश करने खातिर,
खुद को मिटाये जा रहा है.?
आखिर किस सुकूँ की तलाश है तुझे
जो तु अपना सुकूँ गंवाये जा रहा है..।

रुक, सोच , खुद से पूछ जरा ,
खुद के मन को टटोल जरा।

उत्तर अपने हर पृश्न का,
तुझे...