...

16 views

ये रात भी बड़ी जालिम है
के जिन यादों को दफना चुके हैं हम उन्हें वो हरा कर जाती है,
दिल के कोने मे छिपे उस राज़ को वो बार-बार गेहरा कर जाती है |

अंधेरे का चादर ओढ़ जब साम उन यादों की यादें मिटतीं है,
खुद से खफा हुए उस दिल को नजाने क्यों ये बार-बार खरोचती जाती हैं |

गेहराई मे छिपे राज़ कि तरह हर पल ये अपनी एक नयीं कहानी बयान करते हैं,
कुछ धुँधले से उन सपनों को जाने क्यों ये जीने की एकलौती बजह बना जाते हैं |

सपनों के उस मेले मे नजाने कितने ही ख़्वाब भटकते हैं,
पर बेबसी ऐसी है के चाह कर भी उन सपनों से दूर-और-दूर भागे फिरते हैं |

गेहरे अंधेरों मे बसी उस बेबसी ने आज फिर उन ज़ख़्मों को कुरेदा है,
अपनी खामोसी की आड़ मे नजाने कितने ही गमों को इसने फिर से याद दिलाया है . . .
© Harshhh