...

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भावों का अवतरण। ( paraphrase of expressions)
स्मृतियां जो स्वर्ग सी थी, हैं अभी भी,
मैं भ्रमण करने में उनमें बच रहा हूं।
मूक अनुभवों से सुन कर मर्म का ज्ञान,
कर संकलन, सूक्तियां कुछ रच रहा हूं।
नीरसता का भंवर तब ही होगा पार,
न ढूंढ कोई काष्ठ, करों को बना पतवार।
तू न समझ है एकाकी, जगत में सभी हैं,
है ईश्वर भी एकाकी, यही जगत का सार।
क्षमताएं असीम हैं विलेय शून्य की, हो ज्ञात!
न हो निराश, जो शून्य तुझमें हो रहा हो व्याप्त।
मनुज में है सामर्थ्य, विजित होते विघ्न,
एक है, किंतु है सर्वथा पर्याप्त।
रुदन दुर्बलता नहीं, है शक्ति!
है सिद्ध होती चेतना इससे हृदय...