...

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रूप का छलावा
मेरे प्यार में ना रूप का छलावा था,
ना कोई अपना उसके अलावा था।
ना रात दिन मेरा उससे मिलना था,
और ना ही हमें कोई उससे गिला शिकवा था।

मेरे प्यार में ना वादे, ना कसमें थी,
ना मिलने मिलाने की कोई रस्में थी,
ना दौलत,ना शोहरत का गुमान था,
मुझे सिर्फ़ और सिर्फ़ अज़ीज़ उसका ईमान था।

तभी तो मोहब्बत में मुझे जीत मिली,
इश्क़ एहसास बन कर दिल में सजी,
दिल ने यादों के ताज को पहन लिया,
और मेरी मोहब्बत मोहब्बातों का सरताज बन गया।
©हेमा


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