...

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अज़ीब यह ख़ामोशी
आदतन हम ख़ामोश वहां हुए जहां कहना ज़रूरी था
अधरों से निकले लफ्जों को भी सिलना ज़रूरी था

कुछ को हमारी 'ख़ामोशी' से कोई फर्क़ ना पड़ा यारा
किसी की साँसों को यूँही हलक मेें अटक ते देखा था
© कृष्णा'प्रेम'