तू अखबार सा
तू अखबार सा, मैं किताब सी
तू ज़ाहिर सा, मैं राज़ सी
तू आदत सा, मैं शौक सी
तू सवाल सा, मैं जवाब सी
तू बेचैन सा, मैं सुकून सी
तू बंधा हुआ, मैं बेहिसाब सी
तू है रोज़ ही, मैं कभी कभी
तू है मर्ज़ सा, मैं इलाज सी
तू हकीकतें , मैं हूं ख्वाब भी
तू ज़र्द, मैं सुर्खाब सी
तू लत सा है, मैं हूं ज़ायका
तू ईमान सा, मैं सवाब सी
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तू ज़ाहिर सा, मैं राज़ सी
तू आदत सा, मैं शौक सी
तू सवाल सा, मैं जवाब सी
तू बेचैन सा, मैं सुकून सी
तू बंधा हुआ, मैं बेहिसाब सी
तू है रोज़ ही, मैं कभी कभी
तू है मर्ज़ सा, मैं इलाज सी
तू हकीकतें , मैं हूं ख्वाब भी
तू ज़र्द, मैं सुर्खाब सी
तू लत सा है, मैं हूं ज़ायका
तू ईमान सा, मैं सवाब सी
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