...

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कुम्हार और में ।
सपनों से हार कर
अपना सब कुछ औरों पर वार कर
जब थका हारा पहुंचा में एक नुक्कड़ पर
तब नजर गई कुम्हार पर
बैठा था वो गीली मिट्टी के ढेर में
शायद कुछ ढूंढ रहा था वो अंधेर में
कपड़े थे उसके गंदे से
मैंने पूछा क्या कमा लेते हो धंधे से
वो देखा और मुस्कुराया
बोला आओ बैठो पास
बतलाते है तुम्हें क्या है इसमें खास
उसने बतलाया मटके का इतिहास
समझाया उसने इस कला को
सांझा करा अपनी इस सलहा को
बतलाया उसने
केसा होता है मिट्टी का लिबास
केसे होती है मटके की उत्पत्ति
चलो बतलाते है तुम्हें भी क्या है इसमें खास
है ये अलग ही अहसास
चलो अब बंद करो आंखे
सोचो तुम्हारे आस पास भी है मिट्टी की सलाखे
अब डालो उसमे तुम भी हाथ तुम्हे भी होगा
गीली मिट्टी को छूने का आभास
पहले लगेगा थोडा अटपटा सा
फिर लगेगा जैसे हाथ है भरा सा
जब वो ठंडक होगी महसूस
तुम ना रहे सकोगे मायूस
चलो अब मिट्टी को तुम भी दो आकार
थोडा सा अद्भुत कुछ नया ही प्रकार
रखना पड़ेगा धैर्य तुम्हे भी
थकना पड़ेगा तुम्हे भी
चलो अब देते है थोडी सी चमक
देखो ना केसे दिल रहा है धड़क
थोड़ा संभल कहीं सब ना जाए बिखर
आने लगेगा तुम्हें भी मजा
देख कर अपनी रजा
चलो अब सुखाया जाए
थोडा सा खुदको सताया जाए
लगेगा इसमें समय थोडा सा
कही टूट ना जाए तुम्हारा सब्र थोडा सा
पकाना पड़ेगा तुम्हे इसे भी
पकना पड़ेगा तुम्हे भी
तब जाके तुम्हारा मटका होगा त्यार
सब हो जाएगा ठीक चिंता ना करो मेरे यार।
© VB