...

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स्वयंवर...
सन्नाटा है महफ़िल में घोर निराशा छाई है,
चिंतित बैठे जनक नयनो में जलधार समाई है;
क्या नही वीर धरनी पर जो तोड़े शिव धनुष,
होत द्रवित ,पीड़ा मन मे गहराई है।

लक्ष्मण ने जब बैन सुने उर मे अंगार भड़क उठे;
इशारा हो गर रघुवर का तो सारा संसार दहक उठे;
करते बात कायरता की तो वीर विहीन नही वसुधा,
गर स्वाभिमान पर चोट लगे,लक्ष्मण की बाँह फड़क उठे।

हुआ आदेश मुनिवर का रघुवर ने धनुष निहारा है;
करत प्रणाम मन ही मन,धनु शिव प्राण पियारा है;
सीता भयीं पुलकित रहीं रघुवर को निहार,
हे नाथ तोड़ो पिनाक,अब धनु ही मिलन सहारा है।
© pagal_pathik