...

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मौन व्रत
#अपराध
मन मौन व्रत कर अपराध करता है
किस भांति देखो आघात करता है
व्यंग पर गंभीरता का प्रहार करता है
नित नई बाधा से संवाद करता है
हलचलों से भरे समंदर के बीच
हर दिन हर पल जीता मरता है
ये मन बड़ा मासूम है पगले!
टूट जाता है ,जब इसपर कोई वार करता है

कभी खड़ा होता है मुश्किलों में भी
पहाड़ बन कर
कभी रेत की तरह फिसल जाता है
कभी ठूंठ सा रहता है अपने फैसले पर
कभी रुई सा उड़ जाता है
ये मन है पगले
इसका कहां एकसार होता है
कभी मौन रहता है अपराध में तो
कभी विध्वंस तूफान होता है
ये काली सा रूप दिखाता है
तो कभी इसमें मां का प्यार होता है
ये बड़ा विचित्र है पगले
ये तो समझ से पार होता है
ये मन , जिदी है बड़ा
ये कहां शांत होता है
#मौन #मन#तूफान#अपराध

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