...

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मेरा दुःख
जागने पर ख्वाब के खोने का दुःख,
तुझसे मिलकर बिछड़ने का दुःख,
मैं जाग रहा हु रात भर ओर
मुझे उसके यू चैन से सोने का दुख।
मुझे मेरे मरने का दुःखनही,
दुःख तो तुझसे बिछड़कर जिन्दा रहने में है।
मैं जब हँसता हु तो होता है जमाने को दुःख,
मैं रो रहा हु तो अब जमाने को मेरे रोने का दुःख ,
देखो रो पड़ा हु हना रोने का दुःख।
मेने बाट लिया है वीरानों का दुःख और देखा ही नही मेरे पास भी है दुःख।
तुम कह रही हो , मैं तुमसे बिछड़कर कैसे जिन्दा हु,
तुम नही समझोगी
मजबूर की ,मजबूरी को,को वो कितना मजबूर हैं,
खेर छोड़ो मेरी मजबूरियों का दुःख।
अब मैं उसको देखकर सिर्फ मुस्कुराता हु,
देखो हना कितने कमाल का दुःख।
© Verma Sahab