...

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अब घर जाना है ।
उलझन है फसाना है ,
क्या यही अब घराना है ?
राहगीर घुमंतू स्वार्थी ,
विद्यार्थी को कहीं जाना है ।
पाश में जकड़ा मेंहताना है ।

रास्ते पर किसका मालिकाना है ?
आखिर किस ओर मेरा ठिकाना है ?
क्या बिसात अंततः बन जाना है ?
टपकती हुई बूंदो से सराबोर ,
पाश में जकड़ा मेंहताना है ।

© Vatika