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Corona inspired Poetry
एक मुद्दत से आरज़ू थी फुरसत की

मिली तो इस शर्त पे कि किसी से ना मिलो

जो कहते थे मरने तक की फुर्सत नहीं है

वो आज मरने के डर से फुर्सत में बैठे हैं

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The above lines were a fwd recd by me from someone. I don't know who wrote them, they are very well written.
I got inspired to write as a corollary to the above.

Here is my composition...

खुदाये खैर, जब बदल जाएगी ये खिजां, कल फिर बहार में,

फिर वही पुरानी शख्सियतों का आगा़ज़ होगा, लोगों के किरदार में,

महफिलों में किस्से बुलंदियों के, फिर अपने सुनाएंगे वो फख्र से

दयार जिनके निकले थे मुश्किल से, इस दौरे गुरबत की गुबार में

Gurpal
Sangha