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इश्क़ करता हूँ बहुत मगर जताया नहीं करता...
इश्क़ करता हूँ बहुत मगर जताया नहीं करता
मैं उसके आगे कभी गिड़गिड़ाया नहीं करता

क़ातिल चोर निगाहों से चुराता है धड़कनें
मैं डरपोक सा नज़रें मिलाया नहीं करता

वो आ जाए सामने ख़ुद ब ख़ुद तो ठीक
मैं उसके घर के चक्कर लगाया नहीं करता

जिस महफ़िल में जाती है जान बन जाती है
उसके ख़ोफ से मैं महफ़िलें सजाया नहीं करता

डरता हूँ महोब्बत में कहीं तन्हा ना...