...

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ज़िन्दगी फिर से लिखने का मन कर रहा....
ए बादल तू आज जम कर बरस
ताकि धुल जाये बारिश मे ज़िन्दगी की किताब के सारे पन्नो की स्याही...
मेरा मन ज़िन्दगी फिर से लिखने को कर रहा है....

कोरे पन्नो को सतरंगी रंगो से रंगीन बना, नए अल्फाज़ो को लिख, नए तरानो से हसीन बनाने को ये दिल मचला रहा है.....

मुकदर में लिखा मिटा,अपनी तकदीर खुद चमकाने को जी कर रहा है
बारिश की बूंदो सा असमा को धरती से मिलाने का जूनून उमड़ रहा है....

सारी मज़बूरियों, कमज़ोरियों को
नयी उम्मीदों नए हौसलों में तब्दील करने का ये मन हो रहा है
दर्द की दीवारों को गिरा खुशियों की इमारत बनाने को जी चाह रहा है...

चुभते काँटों को हटा
फूलो से सज़ा उनकी खुशबू सा ज़िन्दगी महकाने को दिल कर रहा है.
नफ़रत के बीजों से नहीं
प्यार की धारा से बग़ीचे को सींच
सुंदर कलियों से खिलाने का मन हो रहा है.....

चालाक, मतलबी लोगों से परे
इंसानियत, प्रेम की दुनियां में जाने का मन कर रहा है
दौलत के नशे में नहीं अपनों के साथ उनके ही प्यार में डूब जाने का खुमार बन रहा है.....

जिंदगी को इक हसी गुलिस्तां बना उसे जज्बातों के पेन से, अहसासों की स्याही से, उम्मीदों के कागज़ पर इश्क की जूनिनियत से इक नया आगाज़ नयी राह नए शब्दो को पिरो कर उसे ख्वाबो का नगर बनाने को मन कर रहा है... .....
ज़िन्दगी की फिर से लिखने का मन कर रहा है......


कल्पना@कल्पू