...

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बेशुमार हसरतें
ये गुमनाम सी ज़िंदगी और उस पर बेशुमार हसरतें
उम्र-भर प्रेम किया पर, हिस्से आई बेशुमार नफ़रते

क्या था? क्या हो गया, मैं कहीं फ़िर फ़िर खो गया
हासिल हुआ कुछ नहीं, अधूरी ज़िंदगी की जरूरतें

मुकम्मल 'ख़्वाब' की तलाश मेें रही यह आँखे मेरी
रात की दहलीज को लाँग, बदलता रहा मैं करवटें

साँस बहती रही उसी ओर जहां से 'प्रेम' आया था
क़िस्मत का खेला , बड़ती रही माथे की सिलवटें
© कृष्णा'प्रेम'